नमक, नोनिया (लवणकार)और ब्रिटिश सरका नोनिया जाति नमक,खाड़ी और शोरा के खोजकर्ता और निर्माता जाति है जो किसी काल खंड में नमक बना कर देश ही नहीं दुनियां को अपना नमक खिलाने का काम करती थी। तोप और बंदूक के आविष्कार के शुरूआती दिनों में इनके द्वारा बनाये जानेवाले एक विस्फोटक पदार्थ शोरा के बल पर ही दुनियां में शासन करना संभव था। पहले भारतवर्ष में नमक, खाड़ी और शोरा के कुटिर उद्योग पर नोनिया समाज का ही एकाधिकार था, क्योंकि इसको बनाने की विधि इन्हें ही पता था कि रेह (नमकीन मिट्टी) से यह तीनों पदार्थ कैसे बनेगा, इसलिए प्राचीन काल में नमक बनाने वाली नोनिया जाति इस देश की आर्थिक तौर पर सबसे सम्पन्न जाति हुआ करती थी। इनके एक उत्पाद शोरा को अंग्रेज सफेद सोना (White Gold) भी कहते थे और यह उस काल में बहुत बेसकिमती था। भारत के कुछ हिस्सों पर अपना अधिकार जमाने के बाद अंग्रेज सन् 1620 में पटना में अपना व्यवसायिक और वयापारिक केन्द्र खोलने का पहला प्रयास किया परन्तु उन्हें सन् 1651 में सफलता मिली । डच फैक्ट्री की स्थापना सन् 1632 में हुई थी। इन यूरोपीय व्यापारियों की अभिरुचि भारत के सूती वस्त्र,अनाज,मशाले,शोरा व नमक की प्राप्ती में सबसे अधिक थी। विश्वासघाती मीर जाफर एक गुप्त समझौते के तहत अंग्रजों से अन्दर ही अन्दर मिलकर बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को प्लासी के युद्ध में हरवा कर अपने पुत्र मीरन से पटना में उसकी हत्या करवा दी और स्वयं 15 जून 1757 को बंगाल का नवाब बन बैठा और जब मीर जाफर की सत्ता बिहार में सुदृढ़ हुई तो अपने उस गुप्त समझौते के कारण वश अंग्रेजों को बिना सोचे समझे बिहार में नमक और शोरा के व्यापार का एकाधिकार दे दिया। उसने इसके दुरगामी परिणामों को नहीं सोचा और अंग्रेजों की इसके पिछे की मानसिकता को भी नहीं भांप पाया। नोनिया जाति के लोग बिहार में दुनियां के सबसे उच्च कोटि के शोरा का निर्माण करते थे और इसका व्यापक वे अपनी मर्जी से डच, पुर्तगाली, फ्रांसीसी और ईस्ट इंडिया कंपनी के अंग्रेजों से किया करते थे जिसका इस्तेमाल तोप के गोलों और बंदूक की गोलियों में गन पाउडर के रूप में किया जाता था। लेकिन अब बिहार के शोरा और नमक का उत्पादन तथा व्यापार अंग्रेजों के हाथ में आ गया और सभी शोरा भी अब अंग्रेजों के गोदामों में जाने लगा। यह घटना सन् 1757-1758 के बीच की है।इस घटनाक्रम ने अंग्रेजी शासन का विस्तार और सरल एवं संभव बना दिया क्योंकि उस समय शोरा के बल पर ही कोई युद्ध जीता जा सकता था और अपने साम्राज्य का विस्तार किया जाता था। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि प्लासी के युद्ध के बाद सन् 1764 के बक्सर के युद्ध में मीर कासिम और अवध के नवाब तथा मुगल बादशाह के विशाल संयुक्त सेना को अंग्रेजों के चंद हजार सैनिकों ने बुरी तरह परास्त कर दिया क्योंकि तोप के गोलों के लिए शोरा उनके पास प्रर्याप्त था । इस प्रकार भारत में अंग्रेजों के शासन के लिए बक्सर की लड़ाई ने प्लासी के लड़ाई के बाद शेष बची हुई औपचारिकताओं को पूरा कर दिया। प्लासी के युद्ध ने बंगाल में और बक्सर के युद्ध ने उत्तर भारत में अंग्रेजों की स्थिति को बहुत मजबूत कर दिया। अंग्रेजों का नमक और शोरा पर एकाधिकार होते ही अब नमक और शोरा बनाने वाली जाति नोनिया का शोषण प्रारम्भ हो गया। जो शोरा नोनिया लोग पहले डच, पुर्तगाली और फ्रांसीसी व्यापारीयों से अपनी इच्छा से अच्छी कीमतो पर बेंचा किया करते थे उसे अब अंग्रेजों ने अपने शासन और सत्ता के बल पर जबरदस्ती औने पौने दामों में खरीदना/लुटना शुरू कर दिया। नोनिया जाति के लोग अंग्रेजों के शोषण पूर्ण व्यवहार से बहुत दुखी और तंग थे। भारत में ओ पहली नोनिया जाति ही थी जो अंग्रेजों की भारत को लूट खसोट और शोषण को भली भांति जानी । नोनिया समाज के हमारे पूर्वजों को अब यह समझते देर नहीं लगा कि भारत बुरी तरह से गुलामी के जंजीरों में अंग्रेजों द्वारा जकड़े जाने वाला है, फिर क्या था नोनिया समाज के लोगों ने अंग्रेजों से भारत में पहली बार लोहा लेने और भारत की आजादी की लड़ाई की शंखनाद करने की मंशा से साहस कर अपने नमक और शोरा का व्यापार दूसरे व्यापारियों से करना शुरू कर दिया जिसके चलते ही सन् 1770 में नोनिया जाति का अंग्रेजों से टकराव हुआ जिसे भारतीय इतिहास में नोनिया विद्रोह के नाम से जाना परन्तु देश की आजादी की इस पहली लड़ाई को भारत के पक्षपाती इतिहासकारों और साहित्यकारों द्वारा इसे मिट्टी में दफन कर दिया गया है। नोनिया जाति के लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ सर उठाया था और बगावत कर डाला था जो सन् 1770 से 1800 ईo तक लगातार 30 साल तक चला और नोनिया समाज के लोग अंग्रेजों से अकेले अपने दम पर तिस सालों तक लड़ते रहे।
छपरा के शोरा गोदाम नामक स्थान पर जो आज कल छपरा रेलवे स्टेशन और सोनपुर पुस्तक रेलवे स्टेशन के बीच में शोरा गोदाम नाम के स्टेशन के पास है जहां पर हौलैंड की एक कम्पनी ने पहले शोरा का गोदाम खोला था जहां से शोरा को साफ करके हुगली बंदरगाह, कलकत्ता भेजा जाता था और वहां से फिर विदेश को जाता था। बाद में अंग्रेज़ों ने यही पर एक शोरे की फैक्ट्री खोली थी जिसे सन् 1771 में नोनिया विद्रोहियों ने लूट लिया था और फैक्ट्री में आग लगा दी थी- पुस्तक -बिहार की नदियां, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक सर्वेक्षण से भारत की आजादी की यह पहली लड़ाई थी जो इतनी लम्बी भी चली, परन्तु आख़िर अपने अकेले के दम पर ओ भी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ नोनिया और कितने सालों तक लड़ते ? भारत के सभी दूसरे समाज के लोग कायरों की भांति मुख दर्शक बन दूर से इसे देखते रहे जिसके परिणामस्वरूप ही भारत को 200 सालों तक गुलामी के दंश को झेलना पड़ा,अगर भारत के कुछ लोग भी उस समय नोनिया विद्रोह में नोनिया जाति के लोगों का साथ दिया होता तो भारत अंग्रेजों का गुलाम होने से बच जाता और नोनिया समाज के लोग अंग्रेजों को भारत से मार भगाये होते। अकेला नोनिया जाति के लोग अंग्रेजों को हरा पाने में समर्थ नहीं थे, इसलिए नोनिया जाति के लोग सन् 1770-1800 ईo के नोनिया विद्रोह में हार गए, फिर क्या था अंग्रेजो का दमन चक्र चला और अंग्रेजों ने अपने खिलाफ सर उठाने की साहस करने वाली नोनिया जाति का दमन करना शुरू कर दिया और इस जाति को बुरी तरह से कुचलने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। इस तरह नोनिया का सभी शोरा लूट कर शोले के बल पर ही अंग्रेजों ने भारत को गुलामी की बेड़ीयों में जकड़ दिया और नोनिया जाति के नमक और शोरा के उत्पादन पर कई बार और कई तरह के शोषण पूर्ण कानून थोपते रहे जिसे बाद में इनके ही ऊपर अंग्रेजों द्वारा जबरन थोपे गए नमक कानून के खिलाफ ही महात्मा गांधी ने नमक आंदोलन के द्वारा आजादी दिलाई जिस में नोनिया और दूसरे भारतीय लवणकारों की भूमिका अग्रगणीय रही ।
The background of the Nonia Rebellion, 1770 - 1800, Salt, Nonia saltpeter and the British Government. नोनिया विद्रोह सन् 1770-1800 की पृष्ठभूमि, नमक, नोनिया (लवण कार) और ब्रिटिश सरकार.
The most affected districts during the 'Nonia Rebellion' in Bihar which took place between 1778-1800 was Saran, Vaishali, Purnia. Bihar was the main center of Shora production during this period. Shora was made to make gunpowder. The function of producing Shora was mainly carried out by the Nonia Community The Nonian society had the monopoly of the salt, the gulf, and the Shora's craft industry in India. Because they knew how to make it out of Saline soil, so the salt making in
ancient times was the most economically rich species of the country. Their one product was known as 'White Gold' by the Britishers. • As the company was under great exploitation of the nonia people, they secretly started selling the liquor to the traders. • When the British government came to know of this, he acted cruelly on the nonian people.