बहुमुखी प्रतिभा के धनी और बिहार के नोनिया समाज के भीष्म पितामह एवं अन्य पिछड़ी जातियों के अग्रदूत स्वर्गीय जनकधारी सिंह का जन्म 14 जनवरी 1914 में बिहार प्रांत के पटना जिले के दनियावा गांव के एक सम्पन्न नोनिया परिवार में हुआ था । धन्य हैं इनकी माता और पिता श्री ज्ञानचंद चौहान जिन्होंने सादा जीवन और उच्च विचार से युक्त ऐसे पुत्र को जन्म दिया । इनका परिवार बहुत बड़ा और शिक्षित था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही सरकारी स्कूल में हुई। स्कूली शिक्षा के बाद जब वे थोड़ा होशियार हुए तो उस समय देश की आजादी के लिए संघर्ष करने का दौड़ चल रहा था, जिससे ये अछुते नहीं रहे बल्कि अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता की लड़ाई में भी सक्रिय भूमिका निभाई।
1949 मे वह अपने गांव छोड़कर पटना मेआकर बस गये जनकधारी सिंह एक समाजिक व्यक्ति थे जो नोनिया, बिंद,बेलदार समाज के साथ अन्य पिछड़ी जातियों के समाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास के प्रति हमेशा सजग रहते थे। 1958 मे वे बाल विवाह की प्रथा पर रोक लगाने के लिए सरकार के पास आवेदन दिया एवं गांव गांव मीटिंग करके इस प्रथा को रोकने के लिए लोगों में जागरूकता पैदा किए। स्वर्गीय जनकधारी सिंह 1960 से
ठेकेदारी लाइन मे प्रवेश किये तब से लोग उन्हे जनक ठेकेदार के नाम से भी जानने लगे उनके कंपनी का नाम
सिंह एण्ड संस कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड था।उस जमाने मे बिहार के PWD विभाग डिविजन के वे अकेला ठेकेदार थे इस कंस्ट्रक्शन के संचालन के दौरान वह अपने समाज के बहुत सारे लोगों को रोजगार दिए जब तक उनका कंपनी चला अपने लोगों को ही साथ में रखें और उनके विकास पर ध्यान दिए वे हमेशा बच्चो के शिक्षा पर जोर देते थे वे शिक्षा के महत्व को समझाते थे। उनका मानना था कि शिक्षा के विकास से नशामुक्ति अभियान चला कर अपने समाज को सुधार किया जा सकता है। 1973 मे वह पटना मे एक शिव मंदिर का निर्माण कराया एवं इसी साल 1973 मे ही वह अखिल भारतीय चौहान महासंघ से जुड़े और उस संध से जुड़ने के बाद अपने समाज मे जागरूकता लाने के बिहार के कई जिलो मे सम्मेलन कराये।चौहान संदेश पुस्तक निकालने में इनका भी योगदान था उन्होंने ही सर्व प्रथम बिहार के नोनिया, बिंद, बेलदार अति पिछड़ी जातियों के हक और अधिकार की लड़ाई लड़ने के लिए सन् 1978 में बिहार राज्य मिट्टी कटी मजदूर संघ की स्थापना की थी जिसके वे संस्थापक थे। ये संध वह अपने समाज के लोगों के लिए ही बनाये थे उस समय अपने समाज के ज्यादातर लोग मजदूरी का काम करते थे उन्हें जमींदारों ठेकेदारों से उचित मजदूरी नहीं मिलता था इसलिए उनके हक के लिए वे बिहार सरकार एवं केन्द्र सरकार से समाज के गरीब मजदूरो के हक के लिए आवाज उठाते रहे। 1975 मे सर्वप्रथम बिहार की राजधानी पटना के सेन्ट लेडी स्टिंफन हौल मे स्वर्गीय जनकधारी सिंह की अध्यक्षता में एक विशाल सम्मेलन किया गया उस मीटिंग के चीफ गेस्ट उस समय के मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा थे वह हमेशा बिहार की राजधानी पटना में रहने के कारण जो भी लोग बिहार के बाहर से पटना आते थे तो उन्हें रहने खाने-पीने सभी चीज की इन्तेजाम स्वर्गीय जनकधारी सिंह अपने खर्चे पर किया करते थे वह कोई भी सामाजिक कार्य या बैठक अपने खर्च पर ही किया करते थे नोनिया, बिंद, बेलदार समाज के वास्तविक हक के लिए ये जीवन भर संघर्ष करते रहे। वे हमेशा समाज को शिक्षित करने का और समाज को संगठीत करने का प्रयास करते रहे। एक बार वे राजनीति के क्षेत्र में भी अपनी किस्मत आजमाई थी । उन्हें लगता था कि राजनीति में जाकर पावर में आने पर ज्यादा लोगों की सेवा कर सकते हैं इसलिए सन् 1980 में इन्होंने बिहार के नवादा विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा उनका चुनाव चिन्ह मछली छाप था। वे इस चुनाव में विजई नहीं हो पाये परन्तु 9833 मत लाकर तीसरे स्थान पर रहे । एक सम्पन्न परिवार से ताल्लुक रखते हुए भी इन्होंने कभी दिखावें की जिन्दगी नहीं जिया, बल्कि इन्होंने बहुत ही सरल और सादा जीवन उच्च विचार को अपनाया था। वह दहेज प्रथा के खिलाफ थे उन्होंने अपने किसी भी पुत्र की शादी में दहेज नहीं लिया सिर्फ शगुन के तौर पर 51 या 101रूपया लड़के के हाथ में रखवाये एवं अपने संपत्ति से बेटे एवं बेटियों को बराबर हिस्सा दिया यही उनके अच्छे आदर्शवादी विचारधारा को दर्शाता है वे जब-तक स्वस्थ रहे तब तक अपना जीवन अपने समाज के लिए दिया। 1985 से अस्वस्थता के कारण वह चारपाई पर पड़े पड़े भी समाज के लिए ही सोचते रहे । एवं 18 अक्टूबर 1994 को नोनिया समाज के इस भीष्म पितामह ने अपने समाज की चिंता में ही अंतिम सांसें लीं और पंच- तत्वों में विलीन हो गए।
- यह सच्ची लेखनी स्वर्गीय जनकधारी सिंह के पौत्र संजय कुमार सिंह के कलम से ।
स्वर्गीय जनकधारी सिंह बिहार नोनिया समाज के भीष्म पितामह।
